फोन कॉल के इंतज़ार में नहीं , यह दस्ते सड़कों , गलियों व चौराहों पर मौजूद रहकर ‘रिअल टाइम ‘ कार्रवाई करेंगे . इनकी जिम्मेदारियों में , अपराध रोकने से लेकर अपराधियों की धरपकड़ व केस की जांच करके उनको सख्त सज़ा दिलाना भी शामिल है .
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने इस सिलसिले में 8 मार्च को हस्ताक्षरित अपने आदेश में कहा है कि , “इन दस्तों में प्रशिक्षित कर्मी शामिल होंगे, जो वास्तविक समय के आधार पर ऐसे अपराधों को रोकेंगे’. हरेक जिले में कम से कम दो उत्पीड़न विरोधी दस्ते होंगे, जिनका नेतृत्व जिले के महिला अपराध प्रकोष्ठ के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) करेंगे. प्रत्येक दस्ते में एक निरीक्षक, एक उप-निरीक्षक और चार महिला और पांच पुरुष पुलिस अधिकारी (सहायक उप-निरीक्षक, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल) शामिल होंगे. तकनीकी सहायता के लिए विशेष स्टाफ या एंटी-ऑटो थेफ्ट स्क्वॉड (एएटीएस) के पुलिसकर्मी दस्ते के साथ रहेंगे।
इन दस्तों का ध्यान मुख्य रूप से “हॉटस्पॉट और ऐसे क्षेत्रों” पर होगा जहां जहां महिलाओं की सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा होता है . हरेक जिले के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) हॉटस्पॉट की पहचान करेंगे और उनकी सूची तैयार करेंगे. लेकिन दस्तों को लोगों पर “व्यक्तिगत या सांस्कृतिक नैतिकता थोपने के बजाय कानून लागू करने पर ध्यान केंद्रित करने” के लिए कहा गया है.