भारत में नक्सली हिंसा का एक अध्याय आज समाप्त हो गया जब सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ मैं मारे गए नक्सलियों की पहचान हुई.आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामाराजू जिले में मुठभेड़ के बाद नक्सलियों के जो शव मिले उनमें माड़वी हिड़मा और उसकी पत्नी राजे उर्फ़ राजक्का के शव भी थे. आज ( मंगलवार ) सुबह जिस जगह पर भारतीय सुरक्षा बलों को माओवादी हिंसा के खिलाफ यह कामयाबी मिली वह आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के त्रि-जंक्शन के पास मारेडूमिली जंगल है . नक्सलरोधी यह ऑपरेशन अभी चल रहा है . मारे गए नक्सली माड़वी हिड़मा के सिर पर 50 लाख रुपये का इनाम था .
आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ( dgp andhra pradesh) हरीश कुमार गुप्ता ने बताया कि मुठभेड़ आज सुबह 6 से 7 बजे के बीच हुई. उन्होंने कहा, “मुठभेड़ में एक शीर्ष माओवादी नेता समेत छह माओवादी मारे गए. अभी व्यापक तलाशी अभियान चल रहा है.”
माड़वी हिड़मा के सिर पर भारतीय सुरक्षा बलों पर तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा हमलों में शामिल होने या उनको प्लान करने का इलज़ाम है . इनमें से कई हमले बेहद खतरनाक थे जिनमें केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल ( central reserve police force ) के जवानों की जाने गई और कगाम्भिर रूप से घायल हुए. इनमें 2010 में दंतेवाड़ा में हुआ वह हमला भी शामिल है जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे . 2013 में झीरम घाटी में घात लगाकर किया गया वह हमला भी उसकी भूमिका वाले हमलों की फेहरिस्त में है जिसमें शीर्ष कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे. माड़वी हिड़मा की 2021 में सुकमा-बीजापुर में हुए घात हमले में भी अहम भूमिका निभाई थी, जिसमें 22 सुरक्षाकर्मी मारे गए
तकरीबन 45 वर्षीय माड़वी हिड़मा मध्य प्रदेश के सुकमा ( sukma ) में पैदा हुआ था . उसने पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की एक बटालियन का नेतृत्व किया और सीपीआई माओवादी की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था, केंद्रीय समिति के सबसे कम उम्र के सदस्य बना. वह केंद्रीय समिति में बस्तर क्षेत्र से एकमात्र आदिवासी सदस्य था . उसका मुठभेड़ में मारा जाना माओवादियों के लिए एक बड़ा झटका है खासतौर से ऐसे समय में जब यह लोग सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई के दबाव और साथियों के आत्मसमर्पण के सैलाब से जूझ रहे हैं.
हाल ही में आत्मसमर्पण करने वाले कई प्रमुख माओवादी नेताओं में मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति भी शामिल हैं. उसने 14 अक्टूबर को आत्मसमर्पण के बाद, अपने सक्रिय साथियों से हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होने की बात कही थी . उसका कहना था कि सत्ता और ज़मीन के लिए सशस्त्र संघर्ष में शामिल माओवादी उनके साथियों को यह समझना होगा कि उनके काम के तरीके ने उन्हें जनता से दूर कर दिया है, जो “मार्ग की विफलता” को दर्शाता है.